VIEW HYMN

Hymn No. 2847 | Date: 18-Oct-2004
Text Size
बात बनते बनते बिगड़ जाये, पास आते आते दूर चला जाऊँ।
बात बनते बनते बिगड़ जाये, पास आते आते दूर चला जाऊँ।
हैरान हूँ मैं अपने आप से निकलते हैं तेरी ओर तो दूजी ओर क्यों चला जाऊँ।
उपर से शांत अंदर से तड़पता हूँ, कोई शोला है जो सीने मैं जलता है।
चैन लेने नहीं दे पल भर को, अपने आपको दुनिया में देखता हूँ।
कभी रोता हूँ तो कभी बिसुरता हूँ, किसी के दर्द को देखके तड़पता हूँ।
प्रभु कैसे तू सहता है सबको, जो कही ना कहीं से जुड़ा है तू हम सबसे।
रब ये कैसी खता की सजा है, तेरी रजा हमको समझ में न आये।
गाज गिरे बहुत जिंदगी में, सब बदले बदले ना अंदाज जिंदगी का।
ऐसा क्या कर दूं जो बदल जाये अंदाज मेरे जिंदगी का, बंदगी का।
समझ के जो करने जाऊँ, सागरमाथा को राह रोके हर ओर खड़ा पाऊँ।


- डॉ.संतोष सिंह