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Hymn No. 2389 | Date: 12-Jul-2001
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छिपा न है तुझसे कुछ, कहके कहने से बचना नहीं चाहता।
छिपा न है तुझसे कुछ, कहके कहने से बचना नहीं चाहता।
दिल का हाल जाने तू सब, रब फिर क्यों रुक जाता हूँ।
चाहा होगा लाखों को मगर, चाहत बदलती रही हर पल कई बार।
अब कि जो माना तुझे अपना, तो क्यों न मिला ठिकाना हमको।
समझाता है तू बहुत कुछ हमको, तेरी यह बात क्यो न समझ में आई अब तक।
करते हो कल्याण तुम जगत के सारे, बेमुरव्वत न बन तू मामले में मेरे।
आस से आया हूँ तेरे दर पे, जाने न दे निराश होके मुझको।
तेरा कुछ न जायेगा, मिल जायेगा बेसहारे को आसरा दर पे तेरे।
अकूत है तेरी ताकत तो क्यों सोचे इस निर्बल को कुछ देने से पहले।
पहल तो तुझे ही करनी होगी, मेरी हद तोड़ने के लिये।


- डॉ.संतोष सिंह