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Hymn No. 2383 | Date: 09-Jul-2001
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है... अलबेला हूँ, प्यार की राहत पे अपने आप में अकेला हूँ।
है... अलबेला हूँ, प्यार की राहत पे अपने आप में अकेला हूँ।
लूटने आया था, अब लुट जाना चाहता हूँ तेरे हाथों से।
फरियाद मेरी कोई नहीं है, है भी तो तेरे प्यार को लेके।
कहना नहीं चाहता अपने आप से, दिल में आ जाता है तो क्या करुँ।
सौदा करने न निकला था, हाँ अनजान था अपने स्वार्थो से।
दोष अब भी न देता हूँ, न किये हुये का करता हूँ शोक।
हाँ चाहत में रंग भरना चाहता हूँ दिल के लहू से।
काँटो से भरी डगर पे, बिखेरना चाहता हूँ प्यार के फूल।
कदम पड़े जब तेरे उसपे तो अहसास न हो चलने का।
रंग जाना चाहता हूँ प्यार के रंग में, पता न चले किसी और के होने का।


- डॉ.संतोष सिंह