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Hymn No. 2364 | Date: 21-Jun-2001
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मिलते हो ऐसे वख्त में, जब होता है पहचानना मुश्किल।
मिलते हो ऐसे वख्त में, जब होता है पहचानना मुश्किल।
वो कैसा दिल होता है, जो पहचान लेता है तुझे हर स्वरूप में।
चाहा लाख पर कर न सका कहा तेरा, हर बार रहा असफल प्रयासों में।
वे लोग कैसे करते है अथक प्रयास, विपरीत से विपरीत परिस्थितियों से।
खड़ा रहा करते है इंतजार तेरा, न जाने कब क्यों लग जाती है आँख।
उनका तू तो करता है पलकें बिछाये इंतजार, जो रहते है अपनी धूंन में।
गाता हूँ हर वख्त गुण, फिर भी साकार कर नहीं पाता ख्वाब तेरा।
उनकी ताब देखता हूँ जो खुद तो खुद दूसरों को भर देते है जोश में।
खेल रहा है खेल कौन किसके संग, प्यार के रंग में रंगते हुये।
समर्पण देखके रह जाता हूँ दंग, जो रहता है आतुर रंगने को।


- डॉ.संतोष सिंह