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Hymn No. 2357 | Date: 14-Jun-2001
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हर पल चलती है कश्मकश मन में, तू करता है कितना प्यार मुझे।
हर पल चलती है कश्मकश मन में, तू करता है कितना प्यार मुझे।
तू भी कम नही देता है जो जवाब मन में, जितना तू करता है प्यार मुझे।
तेरी आदत है न जाने कितनी सदियों पुरानी, मियाँ की जूती मियाँ के सर पे मारने की।
बड़ी मुश्किल है बातों में जीत पाना तुझसे, शब्दों से खेलना कोई तुझसे सीखे।
मारा है तूने बेंवफाओ को बेंवफाई से, अरे अपनो को भी न छोड़ा मारा प्यार से अपने।
इलाज भी है तू, मर्ज भी है तू, कब किसके भाग्य में क्या परोस दे।
अकेलापन अपना दूर करने के लिये, खेल खेला माया का तूने हमसे।
अपने ही अंग के टूकड़े हजारों करके बनायी दुनिया, औरु रचा विधान कर्मों का।
इक तरफ भरमाना माया में, दूजी ओर खुद ही आना दुनिया से तारने हमको।
समझ नहीं आया क्या राज है तेरा इसके पीछे, जो खेल खेले न जाने तू कब से।


- डॉ.संतोष सिंह