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Hymn No. 2340 | Date: 05-Jun-2001
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जागी है ललक दिल में, माँ मिलने की।
जागी है ललक दिल में, माँ मिलने की।
अब तक खोया हुआ था ख्वाबों में, उठने पे याद आयी मां की।
देर थी मेरी और से, वो तो पलके बिछाये जोह रही थी बाट।
कहना बहुत कुछ था मुझको, सब जानते हुये भी सुनने को थी वो आतुर।
मचल रहा था दिल, पल पल को देरी बना रही है व्यग्र मन को।
लाख कसवाई थी, पर मिलन के लिये न जाने कितनी तड़प थी।
आँसू झरझर बह रहे थे, माँ के पास पहुँचके भी न थम रहे थे।
सर पे जो हाथ फेरा, रोम रोम मेरा अतुलनीय प्यार पाके झनझना उठा।
उसने कहा तब, रे कैसा तू भूला, तू तो मेरी गोद में था झूला।
मत तू कुछ याद दिला, न ही अब दूर जाने को कह।


- डॉ.संतोष सिंह