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Hymn No. 2328 | Date: 25-May-2001
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कतरा रहे थे भीड़ से हम, न कि तुझसे।
कतरा रहे थे भीड़ से हम, न कि तुझसे।
तेरे लिये तो भाव बहुत था, पर कहने से डर रहे थे।
रात गुजारी आँखो में, सोचते तेरी कही सुनी सुनायी।
दिन को थे उदास, क्यों तेरे पास रहके दूर है हम।
जज़बात तो बहुत थे, पर लंबो तक आके चूप हो रहे थे।
कानोंकान खबर हो चुकी थी लोगों को कि मारा हूँ प्यार का तेरे
दीवानगी में कब से होने लगी उलझन समझ न आये।
बेकरारी बेसबर बना रही थी, पर अब तक दूर थे परिणाम से हम।
जाम था हाथों में, पर मन पे सुरूर चढ़ न पाया।
कहना मुश्किल था कि प्यार का जोर था कि दोष हमारा।


- डॉ.संतोष सिंह