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Hymn No. 2019 | Date: 05-Oct-2000
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तेरे आने से आ जाती है जान इस बेजान में।
तेरे आने से आ जाती है जान इस बेजान में।
खाकसार खाक से उठके चूम लेना चाहता है तुझको।
प्यासे अधरों पे छा जाती है स्मित मुस्कान चुमतें तुझको।
नजर से नजर टकराते, खो देता हूँ मैं होश अपना।
ख्वाबों में तो चलती है श्वास, यहाँ तो होश नहीं रहता।
खामोशी में भी आता है मजा, समय का कोई बोध नहीं होता।
तू भी न है कम जो चुपचाप बेसुधी में छोड़के चला जाता है हमको।
मिलके बिछुड़ने का कब तक चलता रहेगा खेल ये तेरा।
मिटने की है तैयारी हमारी, अब तुझसे मिलन के वास्ते।
अंजाम जो भी हो तेरे इस बंदे का, मौका हाथ से न जाने दूंगा।
पर तू भी कसके थामे रखना, आये झंझावात कितने भी माया के।


- डॉ.संतोष सिंह