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Hymn No. 2008 | Date: 01-Oct-2000
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माना तेरे तीर का निशाना सही, उड़ाना एक ही बार में मेरे चिथड़े।
माना तेरे तीर का निशाना सही, उड़ाना एक ही बार में मेरे चिथड़े।
मनाया जायेगा इक् और नया त्यौहार, जो जन्मेगा नया पर्व विजयादशमी का।
रावण तो लड़ा था तेरे सामने रहके, मैंने तो किया भितरघात पास रहके तेरे।
जमीं आसमां का है फर्क मुझमें उसमें, इक् दुर्गुणों के कारण गवायी जान उसने।
यहाँ तो मिला है जनमो से दुर्गुण, न जाने कर्मों से किये है पाप कितने।
अधिकारी नहीं हूँ तेरा जप करने का, तू देके शाप कर दे नेस्तनाबूद मुझे
इक् बार फिर से होगी तेरी जयजयकार, बुराई पे भलाई के जीत का बन जायेगा तू प्रतीक।
इसके बाद न खेलना तू कोई खेल ऐसा, जो तेरे पास रहके बदल ना सके कोई।
इसमें तो तेरा कुछ ना जायेगा, पर इक् अभागा बनते बनते बिखर जायेगा।
सच पूछो तो मखमलों के बीच में मत लगा तू टाट के टुकड़े का पैबंद।


- डॉ.संतोष सिंह