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Hymn No. 2003 | Date: 29-Sep-2000
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प्रिय अब तो आओ पास मेरे, घरो रूप चाहे कोई भी।
प्रिय अब तो आओ पास मेरे, घरो रूप चाहे कोई भी।
वास होगा जो चित में मेरा, मोह लेगी मुझे कोई भी मुरतियाँ।
रसियाँ हूँ अब तो तेरा, हो जा मन बसिया अब तू मेरे में।
काटे नहीं कटता दिन रात ये, पहाड़ सी जिंदगी गुजारूं कैसे तेरे बिना।
खॉबों में किया था प्यार तुझसे बहुत, अब तो बदल दे हकीकत में उसे।
मेरी बातों में न आना तू, पर दिल का हाल तो तू जान लेना।
गोया ये सच है तड़पता नहीं हूँ हमेशा पर जब तड़पता हूँ तो बन आती है जान पे।
दान में न देना प्यार तेरा, हकदार बनाये बिना तू हमको न छोड़ना।
बेमुरव्वत बेकरार बनाना प्यार के वास्ते, अंजाम जो भी हो तड़पाना खूब प्यार के रास्ते पे।
मिलन में सिफर हो जाता है सब कुछ, रब कोई तो चाहिए तेरा जलवा देंखने के वास्ते।


- डॉ.संतोष सिंह