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Hymn No. 1980 | Date: 18-Sep-2000
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ये मेरा पागलपन है या कोई नया सयानापन।
ये मेरा पागलपन है या कोई नया सयानापन।
ये मेरे अंतर से उपजा है या कोई नई बेवकूफी।
मुझे मेरे हॉल का कुछ नहीं पता, लगाऊँ नयें – नये कयास।
कहीं ए मुझको मेरे प्रयासों से दूर तो नहीं ले जा रहा।
कोई मतलब न है जीवन और मर – मरके करने का।
रहना हो कैसे भी, क्यों बंधे किसी एक विशेष में।
जाहिर है जो वो झूठ है, हम सब सच्च से क्यों है दूर।
कैसा गुरूर कैसा सुरूर, हम हर हालात में क्यूँ है मजबूर।
अपने आप पे क्यों न चले जोर, कभी चलायें बुध्दि तो कभी मन।
भटकाया विषयों ने इंद्रियों को आसक्त करके, क्यों दिया सहारा हमने।
जाल तोड़ा सबका न तोड़ा अगर तो क्या फरक पड़ता है मुझको।
मेरा बनके – मिटना, मिटके – बनना हुआँ न कभी, तो रोना किस बात का।
कैसा उत्तरदायित्व तो किसकी जवाबदेही, ये तो सरासर है बकवास।
कैसा काम जो बनाया मुझे दास, मैं तो हूँ चिरकाल से मुक्त।


- डॉ.संतोष सिंह