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Hymn No. 1978 | Date: 12-Sep-2000
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धरा पे हर इक् का अस्तित्व है अलग अलग, मालिक है अपनी मर्जी का सब कोई।
धरा पे हर इक् का अस्तित्व है अलग अलग, मालिक है अपनी मर्जी का सब कोई।
सबसे बड़ा जुल्म है किसी का मर्जी पे अपनी मर्जी लादना, चाहे हो वो कोई अदना सा व्यक्ति
अगर किसीको न हंसा सकते है, तो किसीको रुलाना जुर्म है सबसे बड़ा।
अगर किसीको न कूछ दे सकते हें तो किसीका छीनना घिनौना पाप है सबसे बड़ा।
अगर किसीको न प्यार कर सकते है दमन करना है अत्याचार।
अगर किसीको के जख्मो को ठीक कर सकते है, तो किसीके जख्मो को कुरेदना धूर्तता है।
अगर किसीको शरण दे सकते है, तो किसीको आश्रयहीन करना काम हे आतातायी का।
अगर किसीको मदत कर सकते है तो किसीकी मदद छिनना सबसे बड़ी खुदगर्जी है।
अगर किसीको न सात्वना दे सकते है तो किसीसे कटुता बोलने का ना कोई हक है।
अगर किसीको न सुन सकते है तो हम जो कहे ऐसा वो माने सोचना है गलत।


- डॉ.संतोष सिंह