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Hymn No. 1964 | Date: 05-Sep-2000
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कसमें खाता हूँ बहुत प्यार की, रस्म निभाता नहीं एक भी प्यार की।
कसमें खाता हूँ बहुत प्यार की, रस्म निभाता नहीं एक भी प्यार की।
यार दामन पे दाग बहुत है, बातें बनाता हूँ अनेको नेक प्यार में तेरे।
चेहरे पे न जाने कितने चेहरे लेके जी रहा हूँ, हर बात पे तेरी दूहाई दे रहा हूँ।
प्यार की राह पे बैठा हूँ सौदा पूरा करने, वासनाओं से भरे मन का।
बेशकीमती तेरे प्यार के वास्ते मेरे पास कुछ नहीं, दमित कुठाओं से भरी ईच्छा है जरूर।
लाख तैयारी करके रखता हूँ, माया के एक ही बार में बिखर जाता हूँ।
फिदा होने के नाम पे अपनी छुपी हुयी फितरत को दर्शाता हूँ।
ऐ विशुध्दता के प्रतीक, बहुत सोंच – समझके इस नाबालिग को अपनाना तू।
मेरा कुछ ना बिगड़ेगा – मेरा बिगड़ा तो सुधरेंगा, कही तेरा बनाया न जाये बिगड़ा।
अपनी तो है इतनी सी रजा दगड़ फेंक फेंक के देगा तू मौत तो भी है कबूल।


- डॉ.संतोष सिंह