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Hymn No. 19 | Date: 01-Jul-1996
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प्रभो रहते है द्वारे – द्वारे, करते है हम अपमान बार – बार,
प्रभो रहते है द्वारे – द्वारे, करते है हम अपमान बार – बार,
फिर भी करते है कल्याण बिन भेद – भाव के ।
नवाजते है हम उनको अपने कुकर्मों से पाषाण ह्रदय कहते है उनको
भाव और श्रध्दा खो चुके है हम मानव तन में बँट चुके है ।


- डॉ.संतोष सिंह