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Hymn No. 1893 | Date: 26-Jul-2000
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अंतर में उठते हुये भावों को न रोक, मिट जायेगे जीवन के सारे सवाल।
अंतर में उठते हुये भावों को न रोक, मिट जायेगे जीवन के सारे सवाल।
छुपे रहते है इसमें जीवन के सारे राज, जतन से करना पड़ता है उसका काज।
मनमानियों से अपने आना पड़ता है बाज, तब गिरती नहीं कोई भी गांज।
करता है आगाज सबको वो इक सा, कोई जानके बना रहे अनंजान तो क्या करे वो।
डरके भी मिलता नहीं है वो, बेधड़क होके करना पड़ता है प्यार सरेआम।
हंसाता तो बहुत है पर पहले अपने आप पे पड़ता हें हसना निकले न कोई आँसू भीतर।
मस्ती की रंग जब चढ़ती है तो उतर जाती है जीवन की सारी रंगत।
उसे पाने के लिये बहुत कुछ पीना पड़ता है कड़वे घूँअ भी हंस हंसके भरना पड़ता है।
सारे शहरों में उस जैंसे रहते नहीं बहुत, उनके रहमों करम पे पहुँचते है पास हम।
दंग हो जाते है अपनी बेहली पे जो वो मनाते हें रंगते है सबको इसी रंग में।


- डॉ.संतोष सिंह