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Hymn No. 1740 | Date: 11-May-2000
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मेरे पिता कहा नहीं, सच पूछो तो है वो जहाँ में हर कहीं।
मेरे पिता कहा नहीं, सच पूछो तो है वो जहाँ में हर कहीं।
क्या ये अनुपम प्यार नहीं उसका, लेने देता है नाम हमको सदा।
लुभा जाती हें उसकी हर अदा, फिदा हो जाना चाहता है दिल।
घर – बार छोड़ - छाड़ के रहने को करता है मन दरबार में उसके।
जो भी समझो रहा नहीं मैं आपे में, प्यार का हो गया शिकार तेरे।
लगे आग सारे संसार में निश्चिंत हूँ, दबा नहीं पाता प्यार की आग।
सोये हुये से हूँ जागा, क्यों अब से पहले जीवन किया बेकार।
हैरानियों का सिलसिला होता न था खत्म, अब तो आता है मजा हर हाल में।
खाल बदल – बदलके जो न जान पाया, किया कमाल वो प्यार नें।
जीते जी हो गया हलाल हाथों प्यार के, फिर भी मन में ना हुआ कोई मलाल।


- डॉ.संतोष सिंह