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Hymn No. 1651 | Date: 07-Apr-2000
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शांत मन में जन्म लेते है आशिकी के गीत।
शांत मन में जन्म लेते है आशिकी के गीत।
गुमसुम बैठा निहारा करता हूँ तेरी तसवीर को।
फिर भी मिलता नहीं तसव्वूर मन को मेरे।
न जाने क्यों ऐसा लगता है, बाकी है अभी भी कुछ।
साकी बन पिलाना चाहता हूँ प्यार का जाम तुझे।
जब खाली हो दिल तो लाऊँ कहाँ से जाम प्यार का।
भीतर तप रही है मेरे, यादों की अनोखी महफिल तेरी।
जो पल गुजारे थे संग तेरे, निकलते नहीं जहन से मेरे।
होश में आने के वास्त ना कर रहा हूँ फरियाद तुझसे।
जो बचा – खुचा है उसे भी बिसर जाने दे प्यार के पीछे तेरे।


- डॉ.संतोष सिंह