VIEW HYMN

Hymn No. 1648 | Date: 05-Apr-2000
Text Size
डूब गया हूँ गम के अँधेरो में, बुझ गया जलता हुआ जो प्यार का चिराग।
डूब गया हूँ गम के अँधेरो में, बुझ गया जलता हुआ जो प्यार का चिराग।
रोशन करना चाहा था जीवन को, आग लगा बैंठा खुदके दामन में।
आशाओं पे हो गया है तुषारवात, अब ना बची कोई बात जीवन में।
दोष ना है इसमें किसीका, अपनो का न मान करते चले गये सपनो का।
मन में थी दो बात, निर्मल प्यार की सौगात कैसे देता अपने यार को।
जोरदार जुआ खेला था, हार बैठा खुदकी इच्छाओं के हाथों।
करनी पे अब आये रोना, सब कुछ खोन के बाद मन ना लगे किसी में।
झूठा था पहले से, क्या गम भी मेरा झूठा है यार के प्यार वास्ते।
आ रहा है रोना निकल न पा रहे है आँसू आँखों से।
क्या करना चाहा था, और क्या कर गया हूँ मैं।


- डॉ.संतोष सिंह