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Hymn No. 10 | Date: 29-Jun-1996
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नदी हो या सागर, पत्थर हो या परबत ।
नदी हो या सागर, पत्थर हो या परबत ।
बादल हो या बिजली, फूल हो या फूलवारी ।
इनको तू ही तो रचता – बसता है ।
ज्ञानी हो या अज्ञानी ; दोषी हो या निर्दोष ।
खल हो या नायक ; चरित्रवान हो या दुराचारी ।
बसते है तेरे जगत में, अपने – अपने कर्मों के कारण ।


- डॉ.संतोष सिंह