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दिनांक: 10-Aug-2015
कुछ न बचा है, हाथों में मेरे, रोष हो जाने को, दिल करता है, आ अब लौट चले|
जहाँ से जहाँ शुरुआत की थी, वहाँ घुल-मिल जाने को दिल करता है |


- डॉ.संतोष सिंह


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