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दिनांक: 08-May-2009
पैसों की खनक से जन्मता बचपन, रुपयों के बीच खोती जवानी |
हसरतें एक के बाद एक न जाने कीतनी, बोझ से दबके मरता बुढ़ापा |


- डॉ.संतोष सिंह


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