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दिनांक: 17-Mar-2005
मैं गुम हो गया हूँ, समय के अतीत में एक याद बन कर,
कैसे कहूँ जो जी ना सका ज़िंदगी को? तेरा ख्वाब समझकर |


- डॉ.संतोष सिंह


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