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दिनांक: 13-Feb-2005
मन जब अपने आप में स्थिर होने लगता है,
या फिर महा मन से संयुक्त हो जाता है |
तब सारी इच्छाओं का परित्याग हो जाता है,
या फिर निःशेष हो जाता है |
मन का दमन नहीं कीया जा सकता, शमन कीया जा सकता है |
कोई भी विधि या परंपरा ईश्वर की ओर उन्मुख होने का एक जरिया मात्र है |
ईश्वर को कीसी मंदिर में जाके पाया नहीं जा सकता,
न ही दुनियाँ से भाग के कीसी गुफा एवं कंदरा में |
संसार में सबसे सहज-सरल-सर्वत्र उपलब्ध है ईश्वर |
ईश्वर यह निश्चित है, ज्ञान भी है, और ज्ञान से परे भी है |
ईश्वर को कीसी बंधन में बाँधा नहीं जा सकता |
उसके जैसा दयालु-कृपालु कोई भी नहीं है |


- डॉ.संतोष सिंह


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