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दिनांक: 29-Jan-2003
ये सब है काका के खयालात, जो हैं मेरी ज़िंदगी के वाक्यात |
आते हैं उनके दर से, उभरते हैं कोरे कागद पे मेरे हाथों से |


- डॉ.संतोष सिंह


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