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दिनांक: 01-Aug-2002
सुलग रहा हूँ, न जाने कब से?, इंतज़ार में धधकने के |
चिंगारी में न थी कोई कमी, तैयारी ही न थी जलने की |


- डॉ.संतोष सिंह


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