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दिनांक: 31-Dec-2001
भावों की लकड़ी सुलगती है, और आँसू करते हैं घी का काम |
तेरा प्रेम है चिंगारी, होम होती जा रही है हर पल मेरी ज़िंदगी |


- डॉ.संतोष सिंह


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