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दिनांक: 30-Dec-2001
बहुत बार फिरता हूँ यादों में, खोए हुए ख्वाबों को तलाशते |
न जाने क्या ऐसा है, जो पूरे नहीं हो पाते ज़िंदगी के यथार्थों में |


- डॉ.संतोष सिंह


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