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दिनांक: 26-Feb-2001
हाथ पकड़ के जितना तू चलाये, उतना ही चलता हूँ |
परेशान हो जाता हैं तू, जहाँ दौड़ा था उससे कहीं पीछे पाता हैं |


- डॉ.संतोष सिंह


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