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दिनांक: 19-Oct-2001
दिवानगी नहीं तो क्याँ, जो मौत को समझ बैठे मौत |
और एक हसीन ख्वाब को, समझ बैठे ज़िंदगी |


- डॉ.संतोष सिंह


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