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दिनांक: 02-Aug-2001
मौला कैसे करूँ ना, जो ज़िंदगी का हर पल गुजर रहा है, तेरे रहमो करम से |
पहले से मारे थे कीस्मत के, जकड़ रखा था जो आलस ने हमको, फिर भी इनायत तो थी तेरी |


- डॉ.संतोष सिंह


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