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दिनांक: 09-Apr-2001
कसम से हमने न सोचा था, रावण रहता है हमारे अंदर |
ऐसे कौन से कर्म थे, जो बन पड़ी हमारी कीस्मत ऐसी |


- डॉ.संतोष सिंह


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