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दिनांक: 25-Feb-2001
जिन्दा हूँ दया के टुकडो पे, वो भी मिले हैं उधार के खातों से |
कहने के नौबतों से बात बनती नहीं, जो करना कभी माफिक नही आय |


- डॉ.संतोष सिंह


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