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दिनांक: 26-Jan-2013
एक राह चला हूँ, दिन-रात ख़्वाब बुनता हूँ |
यार मेरा प्यार क्यों कम है, विरह का दौर क्यों न होता ख़त्म है |


- डॉ.संतोष सिंह


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