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Hymn No. 516 | Date: 20-Dec-1998
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जनम लें रहा है मन के भीतर तेरे प्यार का अंकूर ।
जनम लें रहा है मन के भीतर तेरे प्यार का अंकूर ।

कहीं गहरें दिल के भीतर उसकी जड़े समाती जा रहीं है ।

आज नहीं तो कल समय के संग प्रस्फुटित होगे उसके पल्लव ।

अभिव्यक्त करेंगा अपने आपकों हर इंदियों के संग ।

वो ना होगा इनका गुलाम, वो तो राज करेंगा इंद्र बनकें ।

सान्निध्य रहेगा उसे प्रभु का सदा, पल दर पल बडता रहेगा ।

प्यार का फूल खिलेंगा उसपे, महक बिखरेंगी चारों ओर ।

जहाँ से गंध गुजरेंगी सब को झुमातें हुये, प्रभु का दीवाना बनातें जायेगी ।

जिसनें चख लियसा उसके पघ्ढल को मीत बन जायेगा प्रभु का ।

हर भेद से अलग होके हर दिल में प्रस्फुटित करेंगा प्रेम ही प्रेम।


- डॉ.संतोष सिंह