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Hymn No. 507 | Date: 16-Dec-1998
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जो बंध गये तेरे बंधन में, परवाह कीस बात का करना ।
जो बंध गये तेरे बंधन में, परवाह कीस बात का करना ।
जो होगा देखेंगे ना हम उसे, तेरी मर्जी के सिवाय कुछ ना होगा।
रोनें – धोनें से कूछ ना बदलता, स्वीकार करना पड़ता है सहजता से ।
आज नहीं तो कल बीती को बिसारना पड़ता है कूछ नया करनें के लिये ।
लीक का फकीर बनकें कूछ ना होता है, परिवर्तन का नाम जीवन हें ।
जो जनमा है उसे जीवन के हर दौर से गुजरना है ।
यथार्थ से बिना मुख मौड़े, जीवन यात्रा करनी पड़ती है पूरी ।
कष्टमय कुछ ना है यें सब मन के भाव है, सरल बनकें रहना पड़ता है ।
जो प्रभु चरण में बैठकें गायें गीत, उसका बिगडके भी ना बिगड़े ।
हर इक् के अनुरूप है वो, भेद ना करता कीसी में सामंजस्य कीस बात का।


- डॉ.संतोष सिंह