VIEW HYMN

Hymn No. 2399 | Date: 21-Jul-2001
Text Size
तनहाई खतम होने का नाम नहीं लेती, जो खुदको तनहाई में रखने को मजबूर थे हम
तनहाई खतम होने का नाम नहीं लेती, जो खुदको तनहाई में रखने को मजबूर थे हम
इरादा नेक होते हुये, आदतों को बदलने का नाम नहीं लेते थे हम।
किस्मत ने जो न दिया तो, पुरूषार्थ से क्यों चूक रहे थे हम।
जब जानते थे वो है अरबों में एक, तो क्यों आम बनने पे तुले थे हम।
वख्त वख्त की बात न है कुछ, बस पक्के इरादे की जरूरत है हमको।
हर हाल में जब पाना है उसको, तब अंजाम की परवाह क्यों करना है हमको।
समर्थ आया है धरा पे, तो साथ रहके उसके असमर्थता की बात क्यों करना।
लड़ाई लड़नी है हर पल के हिस्से से हर दिन, तो छूट की मांग क्यों करना।
लकड़ी को तो जल जाना है इक दिन, फिर से परतंत्र होने की बात क्यों करना।
होगा, होगा, होगा जरूर जब आया है हाजरा हजूर, बस अहसास कराते रहना है हमको।


- डॉ.संतोष सिंह