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Hymn No. 2322 | Date: 19-May-2001
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जल में तू, थल में तू, नभ में तू, प्रभु सारे जहाँ में तू ही तू।
जल में तू, थल में तू, नभ में तू, प्रभु सारे जहाँ में तू ही तू।
दिल में तू, मन में तू, तन में तू, प्रभु जी सारे रोम रोम में तू ही तू।
फूलों में तू, कलियों में तू, डालियों पे तू, प्रभु जी उपवन के हर पेड़ पौधों में तू ही तू है।
विचरता नभ में तू, डोलता धरा पे तू, तिरता जल में तू, प्रभुजी भांति भांति के रूपो में समाया है तू ही तू।
भूलोक में तू, पाताल में तू, त्रिलोक में तू, ब्रम्हाण्ड के हर ओर छोर पे तू ही तू।
एकरस तू, दोरस तू, समरस तू प्रभु जी भांति भांति के रसों की खान है तू।
मनुष्य में तू, देवताओं में तू, असुरों में तू, जान अनजान से परे प्रभु जी सबमें तू ही तू है
जन्मदाता तू, पालनकर्ता तू, संहारकर्ता तू, प्रभु जी कर्ता बनके अकर्ता तू ही तू है।
अजन्मा तू, नित्य तू, अकाल तू प्रभु जी सब कालों में रमके त्रिकाल तू ही तू है।
भोग तू, भोक्ता तू, अभोक्ता तू, प्रभु जी सब कुछ ग्रहण करने वाला संपूर्ण तू ही तू है।


- डॉ.संतोष सिंह