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Hymn No. 2231 | Date: 29-Mar-2001
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एक एक पल के लिये शुक्रगुजार हूँ मालिक तेरा।
एक एक पल के लिये शुक्रगुजार हूँ मालिक तेरा।
बखान करना मेरे वश में नहीं, न जाने कितनी है तेरी मेहरबानी।
क्या न कर दूं, तेरे वास्ते, होगा वो सूरज को दीप दिखाने जैसा।
कितने भी कसीदे सुनाऊँ पढ़ पढ़के तेरी शान में पर होगा वो फीका तेरे आगे।
भरता हूँ दम तेरे रहमो करम पे, मेरी जरूरत नहीं जो कर सकूं तेरा बखान।
हजारो बार गायी गयी है तेरी गाथा, पर तेरी बिना होती नही पहचान।
जान की कोई कीमत नहीं तेरे आगे, तू भरता हम बेजानो में जान।
चमकते है तुझसे सूरज चांद, करे तू रोशन अपनी निगाहो से जहाँ को।
मैंने अर्पण किया भी तो कुछ न किया, तेरा दिया हुआ तो तुझको दिया।
दो चार टूटे फूटे शब्दो को जोड़कर मैं कर नहीं सकता, तेरी शुक्रिया का बखान।


- डॉ.संतोष सिंह