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Hymn No. 1646 | Date: 05-Apr-2000
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कर लेने दे इतरा के मुझे प्यार, हूँ झूठा सही तब भी तू कर लेना स्वीकार।
कर लेने दे इतरा के मुझे प्यार, हूँ झूठा सही तब भी तू कर लेना स्वीकार।
करता हूँ हर पल बचकानी बातें, जाने – अनजाने चोट पहुँचाता हूँ तेरे दिल को।
चाहा बहुत बार कुछ करके दिखाना, किया कुछ और ही हमने कारस्तानी।
लाख समझाया समझके भी जो ना समझने की जिद मन ने थी ठानी।
ज्ञानी ना मैं बहुत बड़ा फिर ऐसा क्यों किया, जान न पाया जानके भी।
गुहार लगाता है दिल, प्रिय कुछ भी करके – कहना सिखा दे तेरा कहा हुआँ।
मुझे ना चाहिये कुछ और मुझे रमना सिखा दे तेरी चाहत में।
आहत ना करना चाहता हूँ तेरे दिल को अब और प्रिय।
खत्म कर दें माया से भरे मेरे मन की वासनाओं के खेल को।
यूँ ही हर वक्त करते हुये कुछ भी रमता रहूँ तेरे प्रेम में।


- डॉ.संतोष सिंह