माँ तू इतना रूप क्यों बदले कि पड़ जाये मन सकते में।

Bhajan No.2002 | Date: 28-Sep-2000


माँ तू इतना रूप क्यों बदले कि पड़ जाये मन सकते में।
माँ तू इतना खेल क्यों खेले, हो जाये मेरा दिल देखके दंग।
पल में माशा पल में रत्ती, पलक झपकते बदल जाये स्वरुप तेरा।
किस वास्ते क्रोध इतना, जिसमें दब जाये ममतामयी स्वरूप तेरा।
माँ तेरी महामाया के आगे पड़े अच्छे अच्छे मोह में, मेरी क्या बिसात।
नाता है तेरा मेरा पुत्र का, तो भी मांगे तु मुझसे कुछ ना कुछ सौंगात।
तू ही बता तेरे सामने कहाँ कोई मेरी औकात, जो दे संकू कुछ तुझको।
मन से करता हूँ प्रयास तेरे वास्ते, मन ही साथ छोड़के भागता इधर उधर।
दिल की बात न जाना कभी, तो तू ही बता कैंसे कर पाऊँगा प्यार तुझें।
इंसा रूप में हूँ अनोखा जानवर, जो बस रग्न जाने माँ, माँ मेरी माँ।


- डॉ.संतोष सिंह