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Hymn No. 2320 | Date: 18-May-2001
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झनन, झनन झंकार उठे करते हुये दिल में झन झन की गूंज, रह ले तू मुझसे कितना भी दूर आना पड़ेगा तुझ मेरे पास जरूर।
झनन, झनन झंकार उठे करते हुये दिल में झन झन की गूंज, रह ले तू मुझसे कितना भी दूर आना पड़ेगा तुझ मेरे पास जरूर।
गुन-गुन, गुन-गुन गुनगुनाये भौंरा मन का, तेरे पास मंडराये,

प्राणों का मोह न रहा अब वो बंद हो जाना चाहे तेरी चितवन मे।
कुहूं-कुहूं की तान छेड़े बनके कोयलिया ये बावरा दिल,

इस डाल उस डाल पे मिलन का राग गाता रहे पल-पल।
उहूँ-उहूं करके रोता रहे अंतर, करवट बदलते गुजरे सारी रात,

प्रेम की धार क्युँ है कुछ जो चोट न कर पाये प्रभु तेरे दिल पे।
छन–छन करते समय गुजरता जाये क्षणों में,

बावरा संतोष चाहके भी कुछ न कर पाये बस छटपटाता जाये जिद जी में
ओम ओम की गूंजे अनहद नाद अंतर में करते हुये प्रेम की चित्कार,

प्रभु कैसा प्यार है जहां सकून मिलने के बजाये तड़पाती जाये।
रू रूड़, रू रू, रू करके रूलाती जाये अंतर को मेरे,

ऐ कैसा रूदन है जिसे सुनके प्रभु थोड़ा भी तेरा दिल न पसीजे।
धो... धो... घाट है मेरे चारो ओर घनघोर माया का तेरे,

अभिमन्यु चक्रव्यूह पे चक्रव्यूह तोड़ता चला जा रहा है निकालने की डोर तो सौंप दि है तुझको।


- डॉ.संतोष सिंह