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Hymn No. 2318 | Date: 17-May-2001
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न जाने कितना लंबा सफर है कर्मों का, जो न ले खत्म होने का नाम।
न जाने कितना लंबा सफर है कर्मों का, जो न ले खत्म होने का नाम।
रात दिन तय करता हूँ फासला, तेरा नाम लेते हुये तेरे दर तक पहूँचाने का।
मन के संग उठा पठक करते हुये, दिल के संग चलते हुये बढ़ता हूँ तेरी ओर।
पीछे का न कुछ है किया धरा, आस की मशाल जलाये हुये बढ़ रहा हूँ तेरी ओर।
रफ्तार तो बहुत धीमी है, पर विश्वास के संग बढ़ रहा हूँ कदम दर कदम ।
किस्मत का न हूँ मैं बहुत धनी, पर पुरूषार्थ का सहारा लिये चल रहा हूँ।
जगहंसाई का बहुत बार पात्र बना, पर तेरी कृपा से जो तेरा साथ मिला।
पुलिन्दा बांधू तेरी मेहरबानियों का तो खत्म हो जाये न जाने कितनी मेरी जिंदगी।
आऐ इस कुपात्र के दिल में तूने जलाया परम पवित्र प्यार का दीप।
किया घाव दिल पे तेरे जाने अनजाने में, फिर भी गले से लग जाने का मौका दिया तूने।


- डॉ.संतोष सिंह