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Hymn No. 2316 | Date: 15-May-2001
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रचा बसा है संसार न जाने कितने स्वरूपों में, मिसाल कायम कीया है तूने।
रचा बसा है संसार न जाने कितने स्वरूपों में, मिसाल कायम कीया है तूने।
एक से बढके एक गढ़े है तूने दास्ताँ अपने जीवन की, जो अपने आप में है महान।
कभी तू आता है धरा पे मर्यादा का पाठ पढ़ाते चतुर्भुज स्वरूप धरके।
तो कभी जीवन की हर वर्जनाओं को तोड़के सिखाये डूबना परम प्रेम में।
हर जन्म में तेरा अंदाज है इतना निराला कहना न है कुछ निश्चित सा।
तुझसे बढ़कर परम त्यागमय जीवन जिया है न कोई संसार में।
सहनशीलता की पराकाष्ठा पे भी मुस्कराते हुये निहारे तू अपने पुत्रों को।
उपदेश बहुत कम तूने दिया है, जीवन के हर पहलू को आचारण में उतारके।
अल्प के अल्प में भी खुद को समेटा, तो हद कर दी विलासिता की।
जीवन में जो भी पहलू आते जाते रहे, तूने निभाया मुस्कराते सहजता से।


- डॉ.संतोष सिंह