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Hymn No. 2311 | Date: 09-May-2001
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यार इसमें न कोई दोष है तेरा, जब नियत ही खोटी है हमारी।
यार इसमें न कोई दोष है तेरा, जब नियत ही खोटी है हमारी।
तूने तो चाहा था सौंपना सलतनत तेरी, पर गये गुजरे थे न जाने कितने हम।
रमने का किया बहाना पर बहकते रहे हम अपने कामनाओं के संसार में।
तूने देना चाहा अमृततुल्य परम प्यार, हम तो जलते थे संसार की आग में।
क्या न किया तूने हमारे वास्ते, फिर भी न आये प्रभु तेरे रास्ते पे।
शर्मशार होते तो मर गये चुल्लू भर पानी में डूबके, पर थे जो निर्लज्ज हम।
अपनी मुर्खता पे भी चस्पाया, तेरे नाम का चस्पा, जो उतरे न खुद के गले से कभी नीचे।
आज जब दुत्कार रहा हूँ खुद को, समझ नही पाऊँ किस किस बात की माफी मांगू।
प्रभु जी फिर भी देता हूँ धन्यवाद तुझे, सब जानते हुये आने देता है जो तू पास अपने।
अब डरता हूँ कोई ख्वाब देखने से, जब तब ही नहीं प्यार का दिल के अंतर में।


- डॉ.संतोष सिंह