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Hymn No. 2307 | Date: 04-May-2001
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जी भरके पी लेने दे तेरे प्रेम को, बैरी बन जाऊँ अपने आपका।
जी भरके पी लेने दे तेरे प्रेम को, बैरी बन जाऊँ अपने आपका।
मैं रहना नही चाहता अपने साथ, सब छोड़के आना चाहता हूँ तेरे साथ।
एक पल भी बगैर तेरे अच्छा नही लगता, कर सकता है तू निंदा मेरे कथनी करने का
मानता हूँ हर कमी है मुझमें, फिर भी तुझे पाने का करता हूं विचार।
यह भी पता है तेरे चेहतों के आगे किसी ओर से भी ठहरता नही मैं।
बहुत बार समझाया दिल को, ऐ… संतोष तेरा दर ये नही कही ओर का है तू।
हर वख्त औकात से परे की बात करता है तू, ऊंगली पकड़ाने वालों का हाथ पकड़ता है तू
प्रभु दे दे इतनी सी अक्ल, जानूं अपनी औकात को मानूँ तेरी बात सदा
कसम से मेरे औकात से ज्यादा, दिया है तूने मुझको बहुत कुछ सदा।
आदत थी इतनी खराब, जतन न करना आया तेरे अमर प्रेम को।


- डॉ.संतोष सिंह