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Hymn No. 2306 | Date: 04-May-2001
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लायकियत से भरे संसार में निकला संतोष, पड़ गया हैरत में देखके लोगों को।
लायकियत से भरे संसार में निकला संतोष, पड़ गया हैरत में देखके लोगों को।
अरे समझता था अपने आपको लायक, पर बौना पाया लोगों की लायकियत के आगे।
एक से एक भरमार थी लायकी की प्रभु की दुनिया में, हर एक फनकार थे अपने अपने क्षेंत्रों में।
दमकती थी उनके कर्मों की आभा चेहरे पे, चमक थी आँखों में गुणों की।
मंद मंद मुस्काते करते थे सब कार्य, नम्रता की मानों विशाल मूरत वें थें।
शरमाते, सकुचाते किसी कोने से निहारे संतोष, सोचता प्रभु न जाने कितने रूपों में तू आये।
कोई भी कर्म करे सहजता से, ओर मन ही मन प्रभु का गीत गाते रमते रहते।
प्रभु को हारते देखा उनके हाथों, हर गम को हंसके अपने मन पे झेलते देखा।
प्यार की बड़ी बड़ी मिशाल को टूटते देखा, अपना गाल बजाने वाले संतोष को लजाते देखा।
जहे नसीब था हमारा, जो मोका मिला उनकी कृपा से इतने करीब होने का।


- डॉ.संतोष सिंह