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Hymn No. 2298 | Date: 01-May-2001
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दिल में न जाने कितने तरह के भाव है लेके तुझे।
दिल में न जाने कितने तरह के भाव है लेके तुझे।
प्रकटते है बुलबुलों की तरह, फूट जाते है पल भर में।
प्रभु चाहता हूँ बस तुझसे इतना, जो इक बार भाव बन जाये।
कितनी भी विपरीत परिस्थितीयों में अडिग होके वैसा निभाऊँ।
जो भी बदा होगा भाग्य में, अभागा सह सकता है इक् बार को।
पर अब तेरे बिना जी नही सकता एक पल को भी।
संजोया है न जाने कितने ख्वाब, जो देंखे है नींद भरी रातों में।
अब वख्त आ गया है, एक एक करके उनको साकार करने का।
मंजा हुआँ खिलाड़ी न हूँ, अभी अभी कदम रखा हूँ प्यार की डगर पे।
लड़खड़ा के न मजबूती से चलना चाहता हूँ प्रभु तेरी ओर।


- डॉ.संतोष सिंह