VIEW HYMN

Hymn No. 2294 | Date: 28-Apr-2001
Text Size
नारे न का ताना – बाना बुन गया है चारों ओर मेरे।
नारे न का ताना – बाना बुन गया है चारों ओर मेरे।
निकलना चाह रहा हूँ निकलने के बजाय फंसता जा रहा हूँ।
यह कैसा खेल है, जहाँ हार जीत का न कोई मतलब है।
जो जीतता है ओर जो हारता है, अंत में मौत को पाता है।
निर्णय सबके लिये एक है, कबूल करना पड़ता है चाहो या न चाहो।
खेल भी खेलना पड़ता है सबको, दर्शक तो कही सुदूर से देखे।
कर्मों का नियम है अपिरवर्तनीय, यह कानुन लागू होता है एकसा सब पे।
मुकाबला अपने आप से है, जीतने हारने पे दंड ओर ईनाम भी है।
जो खेलते हुये न खेला, वो कर्मों से परे गया है ठेला।
अजीबो गरीब है इसकी रूप रेखा, जन्मने से पहले शुरू होती है।


- डॉ.संतोष सिंह