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Hymn No. 2291 | Date: 27-Apr-2001
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मैं सही हूँ या झूठ बुन रहा हूँ एक ही सपना, तेरा हो जाने का।
मैं सही हूँ या झूठ बुन रहा हूँ एक ही सपना, तेरा हो जाने का।
मन हो या इच्छा खींचते है मुझको तेरी ओर से, पर मैं पाना चाहता हूँ तुझको।
हुआ है हौंसला पस्त कई बार, प्यार की बूंदे छिडक के कायम किया तूने रफ्तार।
मुझे पता नही जाना है किस ओर, पर तेरे दामन को पकड रखा है जोर से।
चल रही है कश्मकश भीतर कभी हारता हूँ कभी जीतता, पर हर पल तेरी ओर अन्मुय
सपने बदले होंगे लाखों बार, पर चाहत न बदली इक बार भी तेरा हो जाने की।
विश्वास न है मुझे अपने उपर न ही किसी ओर पे, विश्वास तो है तू ही मेरा।
कह ले कोई कितना भी कुछ, पर रह नहीं पाता तेरे बगैर चाहे हो जाये कुछ।
कुछ कर जाना चाहता हूँ, तेरे नाम को रौशन कर जाना चाहता हूँ, क्यों रूका हूँ अब तक।
खाँमियों का ताना बाना उतार फेंकके तेरे नाम का जाम पीना चाहता हूँ।


- डॉ.संतोष सिंह