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Hymn No. 2290 | Date: 27-Apr-2001
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जज़बा प्यार का है ये जो किये बगैर माने नहीं, जाती है जान फिर भी आदत छूटे नहीं।
जज़बा प्यार का है ये जो किये बगैर माने नहीं, जाती है जान फिर भी आदत छूटे नहीं।

कांटो से भरी मंजिल हो तो कोई बात है, निष्कंटक राहों से तो गुजरते है लाखों।

जालिम ने धोखा दिया है यार को प्यार के नाम पे, हर सजा छोटी है इस गुनाह के वास्ते ।

कमबख्त हूँ छूटता नहीं माया का साया, हर बार धोखा खाया फिर भी दौड़ उस ओर लगाया।

आगाज़ किया जो था मेरे हाल का उसको, बरबाद होते देख न सका तो बेवफाई का ईल्ज़ाम सह गया।

रसुख था तो इतना मारा गया तो बडबोलेपन में, जो काम चुपचाप करना था मचाया हल्ला चारों ओर।

धैर जब आया प्यार में कुर्बान होने का, कुर्बान तो खुद को कर गया पर दिल था नदारद जिस्म से

मेहरबानियों का सिलसिला न रोका यार ने, हमारे झूठे प्यार के वास्ते लुटाया अपने आपको।

दम भरते थे यार के नाम का, दाम जब मिला तो यार का नाम याद न आया।

भले मानस तूने ये क्या किया लुटाने की जगह लुटा जोर से, सोचा नहीं तेरे पीछे वालों का क्या होगा।


- डॉ.संतोष सिंह